शेख अंसार की कलम से….
मजदूर कारखाने से गैर कानूनी तरीके से निकाल दिये जाते हैं, दलित, समाज में दोयम दर्जे के नागरिक कहलाते हैं, आदिवासी जंगल से उजाड़े जा रहे हैं, अल्पसंख्यकों के मकान – दुकान बुलडोजर से ज़मींदोज़ किये जा रहे हैं। देश में उपासना स्थल ( विशेष प्रावधान ) अधिनियम 1991 के प्रभावशील होने के बावजूद मस्जिदों में अन्य धर्म स्थल खोजने – खोदने का असंवैधानिक अतार्किक अमानवीय क्रम जारी है …
… ऊपर से तुर्रा यह है, कि जनता से उम्मीद की जाती है, कि वह सिर्फ जिन्दा लाश की तरह टुकुर – टुकुर खामोश देखती रहें, हुक्मरान जान ले, ऐसा तो इतिहास में कभी नहीं हुआ है। जनता सदियों से नाइंसाफी और जुल्मों – सितम के खिलाफ बड़ी – बड़ी कुर्बानियां देते हुए लड़ती – मरती रही है। जनता कोई सरकार नहीं होती, न ही जनता कोई आतंकवादी संगठन होती है, जनता के पास न किसी किस्म का कोई लावलश्कर और असलहा भी नही होता है। उसके पास होती है आंखें जिससे वह अमन और आतंक देखती है। उसके दो पैर होते है जिससे वह अपने जिन्दगी बसर का सफर तय करती है। दो हाथ होते हैं, जिससे वह दुनिया का निर्माण कर अपने लिए रिज्क का इंतजाम करती है। जनता के हाथों में कुदरत ने उंगलियां और उंगलियों में नाखून दिया है। जनता उसी हाथ के नाखून से वह ज़ालिमों का मुंह नोच लेगी, उसी हाथों से कुदरत सुलभ पत्थर के टुकड़े उठाकर ज़ालिमों का सर भी फोड़ देगी।
इंसानियत के खिलाफ चल रहे इस दौर – ए – जुल्मों सितम में हमें इंसानों की एकता को और मजबूत बनाना होगा। किसी भी सत्ता को हथियार जंगखोर मुहैय्या कराते हैं। हमारा प्रतिरक्षात्मक हथियार होता है, हमारा जिस्म और प्रकृति प्रदत्त पत्थर है।