शेख अंसार की कलम से…
उमर खालिद के केस ने उक्त विधिवाक्य को सर के बल कुछ ऐसा खड़ा कर दिया कि, जेल नियम है ज़मानत अपवाद !
दिल्ली पुलिस ने अपने 40 पन्नों की चार्जशीट में उमर खालिद के लिए, आतंकवादी, देशद्रोही, खलिफा जैसे असंगत, असंवैधानिक शब्दों का जबरदस्ती इस्तेमाल किया गया है। उस पर तुर्रा यह कि कोर्ट खुद पक्षकार की शैली में यह कहते अपने को रोक नही पा रहीं हैं, कि केस की गहराई में जाना पड़ेगा। तो जाओ ना लेकिन कोर्ट को आखिरकार यह तो बताना ही पड़ेगा कि एक नवजवान को जेल में रखकर इन 5 वर्षो में विचारण न्यायालय ने वास्तव में कितनी गहराई नापा है। यह जनप्रश्न देश की जनता न्यायालय और अभियोजन पक्ष दोनों से मुश्तरका पूछ रही है। कानून के जानकार के साथ – साथ अब सामान्य जन भी यह बात जान गये है, कि उमर खालिद के केस में अभियोजन पक्ष का वकील विधिक एवं तकनीकी तौर पर कोई भी हो सकता है, किन्तु रणनीतिक और राजनीतिक तौर इस तथ्य को कौन अस्वीकार करेगा कि मूल एवं प्रमुख अभियोजनपक्ष तो दिल्ली पुलिस, उपराज्यपाल एवं गृहमंत्रालय ही है।
उमर खालिद के ज़मानत अर्जियों को ख़ारिज़ करते समय अदालते एक रटे – रटाएं वाक्यों को दुहरा रहीं हैं। इस केस की गहराई में जाये बिना सरकार जो बता रही हैं उसी कहानी को मानना पड़ेगा।
चालान में दंगाई, आतंकवादी, देशद्रोही खलीफा जैसे नाहक तोहमतों के बरक्स दंगों से मिले हमारे जख्म अधिक गहरें हैं।
दंगों के केस की गहराई को हमसे बेहतर और कौन जान सकता है ? दंगों के इतिहास ने हमारे जिस्म में जितने गहरे जख्म दिये है, कि वक्त ने उन जख्मों को अब नासूर बना दिया है। नासूर को सीने में लेकर जीते हुए, मादर – ए – हिन्द की वफादारी में तो हमारी पीढ़ियां बीत रही है। भारतीय इतिहास बेहतर जानता है, कि वतनपरस्ती तो हमारी सांसों में गूंजता है, रगों में ख़ून बनकर बहता है, नतीजतन फिर भी हम अमन और इंसाफ के तलबगार है। जहांपनाह, इतिहास के इस नासूर को सहने और बर्दाश्त करने के लिए यदा – कदा दर्द – ए – जिस्म से पसीना, आंसु और खून की नदियां फूट पड़ती है। आपको शायद ही एहसास हो हमारे जख्म के बरक्स प्रशांत महासागर की 11 किलोमीटर गहरी तह, 2,250 किलोमीटर लम्बी हद और 70 किलोमीटर महासागर के गहरे रकबा में मौजूद अगाध जलराशि भी वतनपरस्ती में बहे हमारे खून से लजाकर नज़रें चुराती है।
40 पन्नों के चालान में मौजूद कमियों को ध्यान में रखकर एवं फौजदारी का कानून का सहारा लेकर उमर खालिद के वकील त्रिदीप बैस ने फिर से ज़मानत अर्जी पेश किया।
जुलाई 2021 को उमर खालिद के वकील एडवोकेट त्रिदीप बैस इस तर्क के साथ दूबारा ज़मानत अर्जी लगाते हैं, कि उमर खालिद के खिलाफ ऐसा एक भी सबूत नही है और न ही कोई चश्मदीद गवाह है। इसके अतिरिक्त इस प्रकरण में जो अन्य गवाह मौजूद है, उनके बयानों में आपस में भयंकर विरोधाभाष व्याप्त है। अतः उमर खालिद को न्यायहित में ज़मानत दे दिया जाए।
पिछले ज़मानत अर्जी के निरस्तीकरण के मौके पर न्यायालय ने ज़मानत नही देने का जो कारण बताए थे उसमें एक और गैरवाजिब नुक्ता जोड़ते हुए न्यायधीश कहते हैं, जेएनयू में छात्रों का जो व्हाट्सएप्प ग्रुप है – दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप जिस में उमर खालिद भी एक सदस्य हैं। इस व्हाट्सएप्प ग्रुप के माध्यम से संदेशों का आदान – प्रदान और प्रसारण किया जाता हैं, अतः उमर खालिद को ज़मानत में छोड़ा जाना उचित नही होगा।
न्यायालय की श्रवणशक्ति कितनी है कानून के जानकार के साथ – साथ अब सामान्य जन भी जानने लगे हैं।
उमर खालिद के वकील ने एक बार फिर से जुलाई 2021 को कड़कड़डूमा अदालत में ज़मानत अर्जी पेश की। जिसे अदालत ने अगस्त 2021 में खारिज कर दिया। कोई विशेष कारण न लिखते हुए केवल यह लिखा कि उमर खालिद यूएपीए के अन्तर्गत निरूद्ध है, ऐसी स्थिति में ज़मानत देना उचित नही होगा।
एफआईआर क्रमांक 101/2020 में ज़मानत मिल जाने के बावजूद उमर जेल में ही रहे क्योकि एफआईआर 59/2020 के धाराओं में सुनवाई नही हो रही थी, ज़मानत भी नही मिली थी। लेहाजा उमर के वकील ने पुनः कोर्ट में ज़मानत अर्जी लगाया, आठ महीने बाद सुनवाई कर अदालत ने 24 मार्च 2022 को इस बार भी ज़मानत अर्जी खारिज कर दी गई।
24 मार्च 2022 को अतिरिक्त सत्र न्यायालय कड़कड़डूमा द्वारा उमर के ज़मानत अर्जी को खारिज किये जाने से विक्षुब्ध होकर उमर के वकील ने 22 अप्रैल 2022 को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष सत्र न्यायालय के ज़मानत खारिज किये जाने के खिलाफ अपील लगाया। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि हम इस मामले को 23 मई 2022 से प्रतिदिन सुनवाई करेंगे एवं समर वैकेशन के पहले निपटा देंगे। लेकिन ऐसा हुआ नही … लेकिन 4 जून 2022 से अवकाश शुरू हो गया, फलत: हाईकोर्ट 4 जुलाई 2022 तक स्थगित हो गई।
आखिरकार 18 अक्टूबर 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट ने उमर खालिद के ज़मानत अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया, कि चार्जशीट के मुताबिक साजिश से लेकर दंगों तक उमर खालिद का नाम बार – बार आया है। जंतर – मंतर, जंगपुरा कार्यालय, शाहीनबाग, सीलमपुर, जाफराबाद के विभिन्न बैठकों में उमर खालिद की उपस्थित रही हैं। हाईकोर्ट ने उमर खालिद के अमरावती में दिये भाषण का भी उल्लेख किया है।
लोकतंत्र में न्यायपालिका जनता की संरक्षक ही नही अभिभावक भी होता है।
लोकतंत्र में न्यायपालिका आम नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों की संरक्षक होती है। संविधान के अनुसार हमारे देश की सरकार का कत्तर्व्य कल्याणकारी राजव्यवस्था है, रोटी, कपड़ा आवास और स्वास्थ्य की आपूर्ति पहली जिम्मेदारी सरकार की होती है।
इन 10 वर्षो में बने जेलों को यदि छोड़ दिया जाए तो, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार हमारे देश में 1319 जेले हैं। 2021 को जारी एनसीआरबी की एक रपट की मानें तो इन जेलों में कैदियों की क्षमता 425609 है लेकिन हमेशा क्षमता से अधिक बंदियों को इन जेलों में रखा जाता है।
न्यायालय इतना अद्यतन और सक्षम होना चाहिए कि यदि कोई दोषी है, तो सज़ा और यदि निर्दोष हो तो जेल में न रहना पड़े।
दिल्ली दंगे के आरोपी – उमर खालिद 1514 दिनों, शरजील इमाम 1732 दिनों, खालिद सैफी 1763 दिनों, तस्लीम अहम 1655 दिनों, गुलफिसा फातिमा 1655 दिनों से जेल में बंद हैं।
भीमा कोरेगांव केस के आरोपी - सुरेन्द्र गाडगिल 2333 दिनों, रोना विल्सन 2333, महेश राउत 2333 दिनों, ज्योति जगत 1508 दिनों से जेल में बंद हैं।
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