बिहार की राजधानी पटना से 250 साल पहले दुनिया का पहला ताम्र (तांबे) टिकट जारी हुआ था, जिसकी क़ीमत 40 करोड़ से ज़्यादा है.
31 मार्च 1774 को जारी एक आना और दो आने के ये टिकट एक तरीक़े के प्रीपेड टोकन थे.
भारत के गर्वनर जनरल वॉरेंन हेस्टिंग्स के ईस्ट इंडिया बंगाल प्रेजिडेंसी ने ये टिकट जारी किया था. दो आने के टिकट का व्यास 26.4 मिलीमीटर और वजन 8.95 ग्राम था.
गोल आकार के इस टिकट के अंग्रेज़ी में ‘पटना पोस्ट दो आना’ लिखा है जबकि दूसरे भाग में फ़ारसी में ‘अजीमाबाद डाक दो आना’ लिखा है.
इन दोनों टिकटों को ‘अजीमाबाद एकन्नी’ और ‘अजीमाबाद दुअन्नी’ के नाम से भी जाना जाता है.
डाक टिकट भारत की संस्कृति और इतिहास को दिखाते हैं.
इस ताम्र टिकट के 250 साल पूरा होने के मौक़े पर बिहार की राजधानी पटना में एक ‘डाक टिकट प्रदर्शनी’ लगाई गई थी, जिसमें देश दुनिया के 20,000 से ज्यादा स्टांप को प्रदर्शनी में लगाया गया.
इस प्रदर्शनी में दुर्लभ स्टांप ब्रिटिश गुयाना वन सेंट मैजेंटा भी शामिल था. ये 1856 में प्रचलन में आया, जब ब्रिटिश कॉलोनी गुयाना में टिकट की खेप आने में देर हो गई.
उस वक़्त गुयाना के तत्कालीन पोस्टमास्टर ने शिपमेंट आने तक तीन तरीक़े के अस्थायी टिकट छपवाए. शिपमेंट आने के बाद ये टिकट प्रचलन से बाहर हो गए लेकिन एक टिकट बच गया.
वन सेंट मैजेन्टा गुयाना के 12 साल के एक बच्चे को 1873 में अपने घर के कागजों के बीच मिला था.
इस बच्चे ने टिकट को 6 शिलिंग में एक स्थानीय आदमी नील आर मैककिनॉन को बेच दिया.
बाद में ये टिकट कई हाथों में बिका और अप्रैल 1922 में इसे अमेरिकी उद्योगपति ने 7343 पाउंड में ख़रीदा. जो उस समय किसी स्टाम्प के लिए चुकाई सबसे बड़ी क़ीमत थी.