संविधान की रौशनी में उमर खालिद की जेलयात्रा

संविधान की रौशनी में उमर खालिद की जेलयात्रा

“शेख अंसार की कलम से”

ज़मानत नियम है जेल अपवाद। इस न्यायिक जुमले को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य आसंदी से मुख्य न्यायाधीश, किसी खाप पंचायत के चौधरी की तरह देश भर की अदालतो की तरफ नसीहत देते हुए उछालते थे।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नेता उमर खालिद को दिल्ली पुलिस ने कतिपय फौजदारी एवं गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धाराओं में आरोपित कर 13 सितम्बर 2020 से जेल में बंदी बनाया है। उमर खालिद कानूनन न्यायिक अभिरक्षा में निरूद्ध है। कत्तई सजायाफ्ता नही है। तत्कालीन ताजेरात हिन्द की धाराएं और जेल मेन्युअल के प्रावधानों में स्पष्ट है, कि न्यायिक अभिरक्षा और दोषसिद्ध बंदियों के मध्य निश्चित और निर्धारित अन्तर है, लेकिन हमारे हुक्मरान संविधान के इस घोषित नियम – अधिनियम को कहां मानते हैं। उनके लिए तो सब धान एक पसेरी है। यही 1860 की पुलिस और मौजूदा केन्द्रीय सत्ता के संरक्षण में फादर स्टेन स्वामी को अक्टूबर 2020 में गिरफ़्तार करने के बाद, 83 वर्षीय बुजुर्ग को आठ महीने मुंबई की जेल में रखा। फादर स्टेन स्वामी पार्किनसन्स नामक गंभीर बीमारी से बूरी तरह पीड़ित थे। स्वास्थ्यगत कारणों का हवाला देकर जमानत की अर्जियां लगाते रहे हैं। जमानत के लिए नियम मौजूद रहने के बावजूद न्यायालय उनकी जमानत अर्जियां नामंजूर करती रही हैं।

मैं सर्वोच्च न्यायालय से अपील करता हूं, मुझे पानी पीने दिया जाए। मुझे पानी पीने के लिए सीपर दिया जाए।

फादर स्टेन स्वामी अपने से गिलास उठाकर पानी भी नही पी पाते थे, अपने इस नियति को बदलने, तोड़ने के लिए पहले जेल प्रशासन से पानी पीने के लिए सीपर की मांग किया। जेलर द्वारा सीपर नही देने पर फादर स्टेन स्वामी अपने जुझारू स्वाभाव के अनुरूप सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक विविध आवेदन के जरिए सीपर की मांग किया। सर्वशक्ति सम्पन्न सर्वोच्च न्यायालय ने फादर स्टेन स्वामी के प्यासे – सूखे हलक की प्यास बुझाने के लिए सीपर प्रदान करने की हिम्मत भी नही जुटा पाई। ऐसी स्थिति में अब तो फादर स्टेन स्वामी के लिए हर दिन मौत का दिन होता था। भारतीय इतिहास का वह निर्मम और क्रूर कालखण्ड था, जब फादर स्टेन स्वामी के प्यास से सूखे हलक की अपील सर्वोच्च न्यायालय ने अमानवीय तरीके से अस्वीकार कर दिया। नये समाज नई दुनिया का सपना अपनी आंखों में संयोजे जेल में उनकी तबीयत इतनी बिगड़ी, इतनी बिगड़ी की आखिरकार उनकी मौत हो गई। फादर स्टेन स्वामी का यह स्वाभाविक मृत्यु नही थी बल्कि न्यायपालिका द्वारा किया गया एक जघन्य हत्या है।

हम वर्तमान न्यायपालिका के पक्षधरता के चरित्र को प्रमाणित करने के लिए तोरी – मोरी करने वाले नही है, अपितु वास्तव में उसके व्यवस्था संगत चरित्र को दिखाने के लिए तथ्य सहित तर्क, प्रकरण सहित प्रसंग, शपथ सहित संविधान सम्मत नज़ीर प्रस्तुत कर रहे हैं।

उमर खालिद की जेलयात्रा 5 वर्ष हो गयी…

Bail is a rule. and jail is a exception

अंग्रेजी के इस शीर्षक के बाद फिर से कल के पोस्ट के शीर्षक को दूबारा उद्धृत कर रहा हूं क्योंकि वह कल से ज्यादा आज और प्रासंगिक है, क्योंकि यह तंत्र का दोष है।

ज़मानत नियम है जेल अपवाद। इस न्यायिक जुमले को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य आसंदी से मुख्य न्यायाधीश, किसी खाप पंचायत के चौधरी की तरह देश भर की अदालतो की तरफ नसीहत देते हुए उछालते हैं।

मार्च 2020 को दिल्ली पुलिस उमर खालिद के खिलाफ 40 पन्नों का चार्जशीट दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट में पेश करती है। यह सर्वविदित है, कि मार्च महीने में गर्मी की शुरूआत हो जाती हैं। मार्च महीना और दिल्ली के गर्मी के बावजूद 40 पन्ने की चार्जशीट पुलिस कांपते हाथों से कोर्ट में पेश करती है, तभी न्यायालय के काॅरीडोर और कोर्ट रूम में मौजूद लोगों को संदेह होने लगा था। चार्जशीट पेश करते समय पुलिस के हाथ भला क्यों कांप रहें हैं। मामला मौसम के सर्द – गर्म का नही था। मामला था झूठ और सच का, न्याय और अन्याय का था। यह इतिहाससिद्ध है गुनाह शक्तिशाली को भी कमजोर बना देता है। वह 40 पन्नो का चार्जशीट महज़ झूठ का पुलिंदा है। इसलिए न्यायालय में पेश करते समय प्रचण्ड गर्मी के बावजूद पुलिस वालों के हाथ कांप रहें थे।

उमर खालिद के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने मुख्यतः दो एफआईआर दर्ज किया है –

एफआईआर क्रमांक 59/2020 एवं 101/2020 धारा 147,148,149, 302 आईपीसी एवं गैरकानूनी गतिविधियां ( रोकथाम ) अधिनियम की धारा 13, 16, 18

दिल्ली पुलिस ने उपरोक्त धाराओं के अनुसार जो 40 पन्नों का चार्जशीट दाखिल किया है। उसके पहले ही लाईन में लिखा है, उमर खालिद देशद्रोह का खलीफा है। दिल्ली पुलिस प्रत्यक्ष तौर पर उपराज्यपाल के नियंत्रण में कार्य करती है। उपराज्यपाल गृहमंत्री के अधीन, इससे ही समझ आ जाता है कि आरोप के आकार – प्रकार और उसके बनावट की प्रकृति के बारे में सब जान गये है। दिनांक 13 सितम्बर 2020 को उमर खालिद को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए जाते है।

ज़मानत नियम है जेल अपवाद यह विधिक शब्दावली कानून के मुताबिक परमादेश ( Mandatory ) की श्रेणी में आती है। संविधान की कोख़ से प्रजनित यह शब्दावली न्यायालय की लापरवाही और उदासीनता के कारण बिखर कर रह गयी है।

गिरफ्तारी के अगले दिन 14 सितम्बर 2020 को उमर खालिद को पुलिस कड़कड़डूमा कोर्ट में पेश करती है जहां से न्यायालय उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज देती हैं। उमर खालिद के वकील त्रिदीप बैस कड़कड़डूमा कोर्ट के समक्ष 23 अक्टूबर 2020 को ज़मानत के लिए आवेदन प्रस्तुत करते हैं।

उमर खालिद के ज़मानत आवेदन पर बगैर मुकम्मिल विचारण के दिनांक 23 मार्च 2021 को अदालत एक रटे हुए तोते के मानिंद सिर्फ इतना ही कहते हुए कि इस‌ केस की गहराई में जाये बिना सरकार ( सरकार अपना निर्णय अभियोजन पक्ष के द्वारा ) जो बता रही हैं उस कहानी को ही मानना होगा। लेहाजा यह न्यायालय प्रस्तुत ज़मानत आवेदन निरस्त करती है। इस तरह उमर खालिद का‌ पहला ज़मानत आवेदन खारिज हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस कथन को कि – ज़मानत नियम है, जेल अपवाद को …

उमर खालिद के केस ने उक्त विधिवाक्य को सर के बल कुछ ऐसा खड़ा कर दिया कि, जेल नियम है ज़मानत अपवाद !

दिल्ली पुलिस ने अपने 40 पन्नों की चार्जशीट में उमर खालिद के लिए, आतंकवादी, देशद्रोही, खलिफा जैसे असंगत,‌ असंवैधानिक शब्दों का जबरदस्ती इस्तेमाल किया गया है। उस पर तुर्रा यह कि कोर्ट खुद पक्षकार की शैली में यह कहते अपने को रोक नही पा रहीं हैं, कि केस की गहराई में जाना पड़ेगा। तो जाओ ना लेकिन कोर्ट को आखिरकार यह तो बताना ही पड़ेगा कि एक नवजवान को जेल में रखकर इन 5 वर्षो में विचारण न्यायालय ने वास्तव में कितनी गहराई नापा है। यह जनप्रश्न देश की जनता न्यायालय और अभियोजन पक्ष दोनों से मुश्तरका पूछ रही है। कानून के जानकार के साथ – साथ अब सामान्य जन भी यह बात जान गये है, कि उमर खालिद के केस में अभियोजन पक्ष का वकील विधिक एवं तकनीकी तौर पर कोई भी हो सकता है, किन्तु रणनीतिक और राजनीतिक तौर इस तथ्य को कौन अस्वीकार करेगा कि मूल एवं प्रमुख अभियोजनपक्ष तो दिल्ली पुलिस, उपराज्यपाल एवं गृहमंत्रालय ही है।

उमर खालिद के ज़मानत अर्जियों को ख़ारिज़ करते समय अदालते एक रटे – रटाएं वाक्यों को दुहरा रहीं हैं। इस केस की गहराई में जाये बिना सरकार जो बता रही हैं उसी कहानी को मानना पड़ेगा।

चालान में दंगाई, आतंकवादी, देशद्रोही खलीफा जैसे नाहक तोहमतों के बरक्स दंगों से मिले हमारे जख्म अधिक गहरें हैं।

दंगों के केस की गहराई को हमसे बेहतर और कौन जान सकता है ? दंगों के इतिहास ने हमारे जिस्म में जितने गहरे जख्म दिये है, कि वक्त ने उन जख्मों को अब नासूर बना दिया है। नासूर को सीने में लेकर जीते हुए, मादर – ए – हिन्द की वफादारी में तो हमारी पीढ़ियां बीत रही है। भारतीय इतिहास बेहतर जानता है, कि वतनपरस्ती तो हमारी सांसों में गूंजता है, रगों में ख़ून बनकर बहता है, नतीजतन फिर भी हम अमन और इंसाफ के तलबगार है। जहांपनाह, इतिहास के इस नासूर को सहने और बर्दाश्त करने के लिए यदा – कदा दर्द – ए – जिस्म से पसीना, आंसु और खून की नदियां फूट पड़ती है। आपको शायद ही एहसास हो हमारे जख्म के बरक्स प्रशांत महासागर की 11 किलोमीटर गहरी तह, 2,250 किलोमीटर लम्बी हद और 70 किलोमीटर महासागर के गहरे रकबा में मौजूद अगाध जलराशि भी वतनपरस्ती में बहे हमारे खून से लजाकर नज़रें चुराती है।

40 पन्नों के चालान में मौजूद कमियों को ध्यान में रखकर एवं फौजदारी का कानून का सहारा लेकर उमर खालिद के वकील त्रिदीप बैस ने फिर से ज़मानत अर्जी पेश किया।

जुलाई 2021 को उमर खालिद के वकील एडवोकेट त्रिदीप बैस इस तर्क के साथ दूबारा ज़मानत अर्जी लगाते हैं, कि उमर खालिद के खिलाफ ऐसा एक भी सबूत नही है और न ही कोई चश्मदीद गवाह है। इसके अतिरिक्त इस प्रकरण में जो अन्य गवाह मौजूद है, उनके बयानों में आपस में भयंकर विरोधाभाष व्याप्त है। अतः उमर खालिद को न्यायहित में ज़मानत दे दिया जाए।

पिछले ज़मानत अर्जी के निरस्तीकरण के मौके पर न्यायालय ने ज़मानत नही देने का जो कारण बताए थे उसमें एक और गैरवाजिब नुक्ता जोड़ते हुए न्यायधीश कहते हैं, जेएनयू में छात्रों का जो व्हाट्सएप्प ग्रुप है – दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप जिस में उमर खालिद भी एक सदस्य हैं। इस व्हाट्सएप्प ग्रुप के माध्यम से संदेशों का आदान – प्रदान और प्रसारण किया जाता हैं, अतः उमर खालिद को ज़मानत में छोड़ा जाना उचित नही होगा।

शेष कल …

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