मणिपुर में पिछले 54 दिनों से जारी मैतेई समुदाय और कुकी-जोमी जनजातियों के बीच जारी हिंसक संघर्ष की आग बुझती नहीं दिख रही है.
पूर्वोत्तर भारत के इस अहम राज्य में अब भी पुलिस और सरकारी गोदामों से हथियार लूटे जा रहे हैं. विधायकों और मंत्रियों के घरों पर हमले हो रहे हैं. हिंसा की आग रह-रह कर भड़क उठती है.
हालात काबू में नहीं हैं. हर गुजरते दिन के साथ मैतेई और कुकी समुदायों के बीच विभाजन की रेखा और चौड़ी होती जा रही है.
ऐसे में राज्य के हालात को लेकर केंद्रीय गृह मंंत्री अमित शाह के नेतृत्व में नई दिल्ली में हुई सर्वदलीय बैठक से उम्मीदें काफ़ी बढ़ गई हैं.
हालांकि बैठक में शामिल विपक्षी दलों ने मणिपुर के हालात के लिए केंद्र को ज़िम्मेदार ठहराया. उनके मुताबिक़ ये देर से उठाया गया एक नाकाम क़दम है.
कांग्रेस समेत कुछ दूसरी विपक्षी पार्टियों ने हिंसा पर पीएम नरेंद्र मोदी की ‘चुप्पी’ पर सवाल उठाया और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की मांग की.
विपक्ष का कहना था कि केंद्र को तुरंत एक सर्वदलीय शिष्टमंडल मणिपुर भेजना चाहिए ताकि राज्य के लोगों को ये भरोसा पैदा हो कि मोदी सरकार सचमुच यहां के हालात को लेकर गंभीर है.
विश्लेषकों का मानना है कि शाह का सर्वदलीय बैठक बुलाने का फ़ैसला इस बात का संकेत है कि केंद्र ने अब ये मानना शुरू कर दिया है कि मणिपुर की समस्या सेना की तैनाती से नहीं सुलझेगी. इसका राजनीतिक समाधान निकालना होगा.