भाजपा ने विष्णुदेव साय के रूप में छत्तीसगढ़ में पहली बार आदिवासी चेहरे पर दांव लगाया है। 59 साल के साय को यह पद बस्तर और सरगुजा के आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस का किला ढहा कर उसके सत्ता बरकरार रखने के सपने पर ग्रहण लगाने लिए इनाम के रूप में मिला है। किसान परिवार से आने वाले साय की आरंभिक पढ़ाई कुनकुरी के सरकारी स्कूल से हुई और स्नातक करने के लिए वह अंबिकापुर गए। हालांकि पारिवारिक वजहों से उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और 1988 में वह गांव लौट आए। एक साल बाद ही 1989 में साय बगिया ग्राम पंचायत के पंच चुने गए और इसके एक साल बिना निर्विरोध उन्हें सरपंच चुन लिया गया।
भाजपा के दिग्गज नेता रहे दिलीप सिंह प्रेरित करने साय 19 जूदेव के चुनावी राजनीति में आए साय संयुक्त मध्यप्रदेश में दो बार विधायक, चार बार लोकसभा सदस्य, दो बार प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री की भूमिका निभा चुके हैं। बीते लोकसभा चुनाव में सभी पुराने चेहरे को टिकट नहीं देने के नीतिगत फैसले के कारण साय लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सके थे। इस बार पार्टी ने उन्हें सरगुजा संभाग के कुनकुरी से चुनाव लड़ाया था। साय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद हैं और राज्य के पूर्व सीएम रमन सिंह के करीबी होने के साथ ही संघ की भी पसंद हैं। आदिवासी क्षेत्र में धर्मपरिवर्तन रोकने की संघ की मुहिम में साय में अहम भूमिका निभाई है।
बस्तर-सरगुजा में संभाली कमान
बीते चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा संभाग को 26 में से 25 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी। इस बार इन दोनों संभागों में रणनीति की कमान साय के हाथ में थी। भाजपा को इस बार इन दोनों संभागों में 21 सीटें मिलीं। पार्टी ने सरगुजा संभाग की सभी सीटों पर कब्जा किया।
1989 में बने थे पंच
साय ने 1989 में बतौर पंच सियासी सफर शुरू किया। अगले साल निर्विरोध सरपंच बने। साल 1990 में ही विधायक चुने गए। 1999 से 2019 तक लगातार चार बार रायगढ़ से लोकसभा चुनाव जीते। विधायक, सांसद, मंत्री बनने के बावजूद उन्होंने सरगुजा स्थित अपने गांव के अतिरिक्त कहीं घर नहीं बनाया।
दसवीं पास हैं साय
विष्णुदेव साय का जन्म छत्तीसगढ़ में जशपुर के बगिया गांव के किसान परिवार राम प्रसाद और जसमनी देवी के घर हुआ। दसवीं पास साय ने 1991 में कौशल्या देवी से शादी की और उनके एक बेटा और दो बेटियां हैं। पहले दौर की बैठक के बाद पर्यवेक्षकों को केंद्रीय नेतृत्व की ओर से अपनी पसंद के रूप में साय के नाम की घोषणा करने का निर्देश दिया गया। पर्यवेक्षकों को विधायकों को यह सूचना देने के लिए भी कहा गया कि नेतृत्व ने पूर्व सीएम रमन सिंह को स्पीकर, साहू समाज से जुड़े अरुण साव और विजय शर्मा को डिप्टी सीएम बनाने का फैसला किया है। इसके बाद वन टू वन बैठक में विधायकों को इस फैसले की जानकारी दी गई।
29 में से 17 आदिवासी बहुल सीटें जीती भाजपा ने
नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में इस्पात राज्य मंत्री रहे विष्णुदेव साय तीन बार छत्तीसगढ़ भाजपा के अध्यक्ष भी रहे हैं। भाजपा ने इस बार राज्य की 22 आदिवासी बहुल सीटों में से 17 जीती हैं। विष्णुदेव साय ने 2006 से 2010 तक और उसके बाद जनवरी से अगस्त 2014 तक प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। 2018 विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद 2020 में एक बार फिर उन्हें पार्टी अध्यक्ष का पद सौंपा गया। 2022 में उनकी जगह ओबीसी समुदाय से आने वाले अरुण साव को पार्टी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई। 2023 विधानसभा चुनाव से पहले जुलाई में साय को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया। 2003 और 2008 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने उन्हें दो बार पत्थलगांव सीट से चुनाव मैदान में उतारा लेकिन साय दोनों बार चुनाव हार गए। इसके बावजूद केंद्रीय नेतृत्व और नरेंद्र मोदी का भरोसा साय पर बना रहा। चुनाव में पार्टी ने उन्हें कुनकुरी से अपना प्रत्याशी बनाया और उन्होंने 25541 वोटों से मौजूदा कांग्रेस विधायक रहे यूडी मिंज को मात दी।