भूपेश बघेल और कांग्रेस क्यों नहीं समझ पाए हवा का रुख

भूपेश बघेल और कांग्रेस क्यों नहीं समझ पाए हवा का रुख

2018 के चुनाव में 68 सीटें हासिल कर के सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी ने, ताज़ा चुनाव में 75 पार का नारा दिया था. लेकिन हालत 2003 जैसी हो गई.

बघेल के अहंकार को जवाब’
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं, “जनता ने भूपेश बघेल के अहंकार को जवाब दिया है. पांच सालों तक कांग्रेस के भ्रष्टाचार को जनता ने जवाब दिया है. यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में लड़ा गया था, उनकी गारंटी पर जनता ने भरोसा जताया और भूपेश बघेल की सरकार और उनके अधिकांश मंत्रियों को नकार दिया.”

ताज़ा चुनाव में कांग्रेस के अधिकांश दिग्गज़ नेता हार गए हैं.

ताज़ा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के अलावा बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने अपनी उपस्थिति ज़रूर दर्ज़ कराई लेकिन दूसरी पार्टियों का बड़ा असर होने की संभावना धरी रह गई.

इसके उलट अधिकांश सीटों पर भाजपा ने बड़े अंतर से चुनाव जीतने में सफलता पाई है और भारी अंतर से हार के कई रिकॉर्ड भी बने हैं.

दिग्गज हारे चुनाव

हालत ये है कि पिछले चुनाव में पूरे राज्य में सर्वाधिक 59284 वोटों के अंतर से कवर्धा से जीत हासिल करने वाले मंत्री और सरकार के प्रवक्ता मोहम्मद अक़बर भी 39,592 वोटें के अंतर से चुनाव हार गए हैं. कवर्धा में पिछले दो सालों से सांप्रदायिक तनाव का वातावरण बना हुआ था.

उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव अंबिकापुर से चुनाव हार गए हैं.

इसी तरह कवर्धा के पड़ोस की साजा सीट से, राज्य के दूसरे कद्दावर मंत्री और सरकार के दूसरे प्रवक्ता रवींद्र चौबे भी चुनाव हार गए हैं. इसी साल अप्रेल में, साजा के बीरनपुर गांव में हुए सांप्रदायिक दंगे में एक युवक भुवनेश्वर साहू की हत्या कर दी गई थी. दो दिन बाद इसी गांव में दो मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी. राज्य सरकार ने हिंदू युवक के परिजनों को 10 लाख रुपये और नौकरी देने की घोषणा की थी लेकिन मुसलमानों के लिए सरकार ने कोई मुआवज़ा घोषित नहीं किया और परिजनों को हाइकोर्ट जाना पड़ा.

भारतीय जनता पार्टी ने इस साजा सीट पर भुवनेश्वर साहू के मज़दूर पिता ईश्वर साहू को अपना उम्मीदवार बनाया था.

हिंदुओं के साथ खड़ी दिखने की कोशिश करने वाली कांग्रेस सरकार, अपनी इस पारंपरिक सीट साजा को भी नहीं बचा पाई और रवींद्र चौबे हार गए.

हिंदुत्व काम न आया
2018 में सत्ता में आने से पहले ही ‘छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी’ का नारा देने वाली कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में आते ही, नदी नालों, गौवंश, जैविक खाद और सब्जी उगाने वाली बाड़ी को प्रोत्साहित करने की योजना पर काम शुरू किया लेकिन सरकार ने मूल रूप से गोबर ख़रीदने की अपनी योजना को ही सर्वाधिक प्रचारित किया. धीरे से सरकार ने गोमूत्र की भी ख़रीदी शुरू कर दी.

इस बीच सरकार, राज्य भर में राम रथ यात्रा में भी जुटी रही.

कांग्रेस सरकार उस राम वन गमन पथ का निर्माण करने में जुटी रही, जो मूलतः आरएसएस और भाजपा का एजेंडा था. भगवान राम की माता कौशल्या के नाम पर बनाए गए मंदिर के सौंदर्यीकरण और उसे प्रचारित करने का कोई अवसर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने हाथ से जाने नहीं दिया. जगह-जगह भगवान राम की विशालकाय मूर्तियों की स्थापना तो जैसे सरकार की प्राथमिकता में शामिल रही.

एक तरफ़ आदिवासी आस्था के प्रतीकों को हिंदू देवी-देवताओं से जोड़ने का काम कांग्रेस पार्टी की सरकार करती रही, वहीं दूसरी ओर आदिवासियों के विरोध के बाद भी, अंतरराष्ट्रीय रामायण महोत्सव और गांवों में मानस प्रतियोगिता जैसे आयोजनों का सिलसिला राज्य भर में जारी रहा

कांग्रेस नेताओं के संरक्षण में भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए आयोजित गोष्ठियों की चर्चा तो देश भर में हुई.

इसी तरह, ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों पर हमले, उनके शवों को उखाड़ कर फेंकने और प्रार्थना स्थलों पर तोड़फोड़ के जितने मामले रमन सिंह की सरकार के 15 साल के कार्यकाल में हुए थे, उससे कई गुना अधिक मामले कांग्रेस की पांच साल के कार्यकाल में सामने आए.

सांप्रदायिक दंगों में मारे जाने वाले हिंदुओं को मुआवजा और नौकरी और इसके ठीक उलट ऐसी ही हिंसा में मारे जाने वाले मुसलमानों की उपेक्षा के बाद, राज्य में मान लिया गया था कि छत्तीसगढ़ की लगभग चार फ़ीसद की अल्पसंख्यक आबादी की परवाह कम से कम कांग्रेस पार्टी को तो नहीं ही है.

लेकिन हिंदुत्व का जो मैदान कांग्रेस पार्टी ने तैयार किया, विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उसी मैदान पर कब्ज़ा कर के अपनी जीत दर्ज़ की.

छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संवाद प्रमुख कनीराम नंदेश्वर ने कहा,“कांग्रेस सरकार ने हिंदुत्व के मुद्दों को स्पर्श करने की कोशिश तो की लेकिन उसमें ईमानदारी नहीं थी. इसकी आड़ में तुष्टिकरण किया गया. इसी तरह राज्य भर में धर्मांतरण की घटनाएं बढ़ीं और रही-सही कसर बेमेतरा में हुए उस दंगे ने पूरी कर दी, जिसमें एक हिंदू युवा को दिन-दहाड़े मार डाला गया.”

हालांकि कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला इससे सहमत नहीं हैं.

सुशील आनंद शुक्ला ने कहा, “हमारे लिए हिंदुत्व वोट का कभी मुद्दा था ही नहीं. वह छत्तीसगढ़ की संस्कृति को सहेजने की प्रक्रिया थी. हालांकि हमने जनविकास के लिए लगातार पांच साल काम किया. जनता के लिए ताज़ा चुनाव में भी कांग्रेस ने कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की थी, लेकिन जनता को भाजपा ने झूठ बोल कर भरमाया और जीत हासिल की.“

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