*इतिहास हमें बताती है, कि चुनाव पांचसाला रस्म है, असली लड़ाई की उम्मीदवार जनता की कमेटियां होती है, जो अंतिम और फैसलाकुन लड़ाईयां लड़ती है !
गुजरात के सूरत लोकसभा क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुम्भानी का नामांकन सहायक जिला निर्वाचन अधिकारी सौरभ पारधी द्वारा रद्द कर दिया जाता है। इस तरह सूरत लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस चुनावी मैदान से बाहर हो जाती है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम एवं नोटा के प्रावधानों की अवहेलना कर संविधान के विरूद्ध कलेक्टर सूरत भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल को विजय घोषित कर देते हैं। कर्नाटक के हसन लोकसभा सीट के उम्मीदवार एवं पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना की हजारों अश्लील वीडियोज के सामने आने से 400 पार का नारा लगाने वाले प्रज्वल रेवन्ना की सांसें फूलने लगती है और वह सात समुन्दर पार भाग खड़े होते हैं।
सूरत लोकसभा क्षेत्र के सहायक निर्वाचन अधिकारी के लोकतंत्र विरोधी फैसले के खिलाफ प्रभावित पक्ष न्यायालय का रूख कर ही रहे थे, कि इंदौर लोकसभा क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी ने अक्षयकांति बम ने नामांकन के बाद अपना नाम वापस लेकर मैदान छोड़ भागा खड़े हुए।
कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव मैदान से कैसे भागे ? प्रज्वल रेवन्ना सभी नामचीन दुष्कर्मियों को पीछे छोड़कर अपनी करतूतों से भागा है।
कांग्रेस के प्रत्याशी मैदान से कैसे भाग रहे इसे सहज ही समझा जा सकता है। सत्ता की शक्ति का इससे पहले इतना नग्न स्वरूप ज्ञात इतिहास में देखने को नही मिलता। जिस प्रज्वल रेवन्ना के लिए नरेन्द्र मोदी ने चुनावी हुंकार भरा था, वह अपनी अश्लीलता के कारण भाग गया उस रणछोड़दास के ऐसे अश्लील हरकत से हमारे प्रधानमंत्री का अभिनंदन नही मान – मर्दन ही हुआ है। यह मानना कैसे मुमकीन होगा, कि प्रज्वल रेवन्ना का रिपोर्ट कार्ड, चरित्र वर्णन प्रधानमंत्री को नही था, यह कैसे मान लिया जाए कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस स्तर तक का नकारा हो गया है। चुनाव पार्टनर प्रज्वल रेवन्ना के ऐसे पतित हरकतों से विश्व में हमारा कीर्ति पताका नही अपयश का पताका पहर रहा है। साम, दाम, दण्ड, भेद, राजनीति, कूटनीति का अच्छा इस्तेमाल तो कर लेते हो लेकिन लब्बोलुआब में नतीजा तो यही निकल रहा कि आप बिना लड़ें जीतना चाहते हैं ! लेकिन यह जान लें चुनाव से उम्मीदवार को लालच, भय दिखाकर हटा सकते हैं, लेकिन उस जनता को कैसे हटायेंगे जो मणीपुर में आपके नीतियों का सिद्धांत का स्थाई विपक्ष बनकर लड़ रही है। सत्ता ने प्रयास तो बहुत किया सितम – दमन का दौर भी चलाया लेकिन किसानों को कहां मैदान से हटा पायीं। उम्मीदवार को मैदान से हटाने से क्या देश से बेरोजगारी हट जायेगी ? सत्ता हासिल करने के लिए जो अरबों – खरबों पानी की मानिंद बहाया जा रहा है क्या उससे मंहगाई कम हो जायेगी ? उम्मीदवार को चुनावी मैदान से हटाने में कामयाब हो जाओगे लेकिन उस जनता को कैसे मैदान से हटाओगे जो लहर दर लहर हुकूमत के खिलाफ अपने काम के लिए, सही दाम के लिए, अन्याय के खिलाफ न्याय के लिए, क़ौमी एकता के लिए मैदान – ए – जंग में उतरेगी।