छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा में आई कमी के पीछे एक बड़ा कारण नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास योजनाओं को पहुंचाने में मिली सफलता है। अब इसमें कोई दो राय नहीं कि नक्सली न केवल विकास विरोधी हैं, बल्कि वे निर्धन एवं वंचित तबकों की झूठी आड़ भी लेते हैं। नक्सलियों के इस रवैये को बेनकाब करने की जरूरत है। यह काम मुश्किल इसलिए नहीं, क्योंकि आए दिन यह देखने को मिल रहा है कि नक्सली किस तरह विकास के कामों में बाधा पहुंचाते हैं। वे न केवल सड़कों के निर्माण के विरोधी हैं, बल्कि यह भी नहीं चाहते कि ग्रामीण इलाके संचार सेवा से जुड़ें और यही कारण है कि हाल के समय में सड़क निर्माण कंपनियों को धमकाने और मोबाइल टॉवरों को नष्ट करने के मामले बढ़ते दिखे हैं।
अब यह एक सच है कि नक्सली संगठन निर्धन आदिवासियों एवं ग्रामीणों की आड़ में उगाही करने वाले संगठन में तब्दील हो गए हैं। वे माफिया गिरोह की तरह से काम कर रहे हैं। गांव-गरीब के हित से उनका कोई लेना-देना नहीं। यह तो पहले से ही स्पष्ट है कि संविधान और कानून में उनका कोई भरोसा नहीं।
वे लोकतांत्रिक मूल्यों और मान्यताओं को भी कोई महत्व नहीं देते। ऐसे लोगों के खिलाफ सख्ती दिखाने में संकोच नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन विडंबना यह है कि नक्सल प्रभावित राज्यों में कई ऐसे राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठन हैं, जो अपने स्वार्थो के चलते नक्सलियों की प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मदद करते रहते हैं। इन संगठनों के खिलाफ भी सख्ती बरतने की जरूरत है।
इसके अतिरिक्त इस पर भी प्राथमिकता के आधार पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि आखिर नक्सली संगठन आधुनिक हथियार एवं विस्फोटक कहां से हासिल कर ले रहे हैं? पता नहीं नक्सलियों की हथियारों तक पहुंच को रोकने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं? दरअसल यह काम भी प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त यह भी देखने की जरूरत है कि नक्सल प्रभावित राज्यों की पुलिस और अधिक सक्षम कैसे बने। इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि नक्सलियों की कमर तोड़ने का काम मोटे तौर पर केंद्रीय सुरक्षा बलों ने किया है। नक्सली फिर से सिर न उठाने पाएं, यह सुनिश्चित करने का काम राज्य सरकारों और उनकी पुलिस को ही करना चाहिए।