हमारे देश में परिवार को सबसे ज़्यादा अहमियत दी जाती है. लोग अपने परिवार के लिए क्या नहीं कर गुज़रते. कभी परिवार की ख़ुशी के लिए अपनी निजी ख़ुशियों की क़ुर्बानी देते हैं. तो, कभी परिवार के साथ मिल-जुलकर रहने और परिवार को ख़ुश रखना ही अपनी ज़िंदगी का मक़सद बना लेते हैं.
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दुनिया के बहुत से देशों में परिवार को तरज़ीह देने की संस्कृति है. वहीं कुछ ऐसे देश भी हैं जहां मां-बाप और बच्चे ग़ैरों की तरह ज़िंदगी गुज़ारते हैं. ख़ुदपरस्ती इनकी संस्कृति का हिस्सा है. बुज़ुर्ग मां-बाप को साथ रखना निजी ज़िंदगी में दख़लअंदाज़ी माना जाता है.
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नशा
ऐसा ही प्रकरण रायपुर के टिकरापारा थाने में आया जिसमें एक मां जरीना अली ने अपने बेटे सैफ अली.को नशे की आदत से और रोज रोज की लड़ाई से परेशान हो कर अपने घर परिवार से अलग कर दिया। ऐसे कई और मामले रोज थाने कोर्ट में आए दिन आते हैं।
पलायन
पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि भूमंडलीकरण की वजह से उन देशों में भी परिवार टूट रहे हैं, जहां अकेले रहने की रिवायत नहीं है. भारत की ही बात करें तो बड़ी संख्या में लोग रोज़गार की तलाश में गांवों से शहरों में या विदेशों में पलायन कर रहे हैं.
जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी परिवारों में एक दूरी बन रही है. यही हालात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हैं और आज रिसर्च का विषय बन गए हैं.
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अलग होने और साथ रहने की वजह
लगभग सभी देशों में आज बुज़ुर्गों के लिए ओल्ड एज हाउस बनने लगे हैं. उन्हें वहां हर तरह की सहूलतें मिल जाती हैं. जिन देशों में कल्याणकारी सुविधाएं बड़े पैमाने पर दी जाती हैं, वहां परिवार के नौजवान सदस्यों को अलग करने में कोई बुराई भी नज़र नहीं आती.
उन्हें लगता है कि हर उम्र के लोगों को हमउम्रों की ज़रूरत होती है. वो अपने बुज़ुर्गों के साथ रिश्ता मज़बूत बनाए रखने के लिए भी उनसे दूरी बना लेते हैं.
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20 साल बाद कैसा होगा समाज
शहरों में बड़े परिवार को साथ रखना आसान नहीं है. इसलिए भी बुज़ुर्गों के साथ अलगाव की स्थिति पैदा हो रही है. और गुज़रते दौर के साथ ये स्थिति और मज़बूत होगी.
लेकिन कुछ रिसर्चर मानते हैं कि किसी भी समाज में सांस्कृतिक मूल्य बहुत मज़बूत होते हैं. वो आसानी से ख़त्म नहीं होते. लिहाज़ा जिन समाज में परिवार के साथ रहने का चलन है वो आगे भी रहेगा. लेकिन रिसर्चर वनडेरा को यक़ीन है कि आने वाले 20 साल में स्थिति पूरी तरह बदल जाएगी.
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तलाक़ और अलगाव
समाज में तलाक़ का चलन बढ़ता जा रहा है और परिवार टूट रहे हैं. इसके अलावा अलग सेक्सुअल पहचान वाले लोगों के लिए भी परिवार के साथ रहना मुश्किल हो जाता है और ख़ामोशी से अलग हो जाते हैं.
ऐसा नहीं है कि परिवार में अलगाव तेज़ी से और रातों रात हो रहा है. बल्कि ये बहुत धीरे-धीरे हो रहा है. कई बार छोटी सी घटना भी परिवार को तोड़ देती है. कहने को तो वो एक घटना होती है लेकिन उसके नतीजे दूरगामी होते हैं.
उम्र के फ़र्क़ के साथ-साथ मां और बच्चों के मूल्यों में अंतर आ जाता है. मिसाल के लिए अगर मां बहुत धार्मिक हैं और उन्होंने बच्चों को भी वहीं संस्कार दिए तो भी ज़रूरी नहीं कि बच्चे उन्हीं संस्कारों को मानें.
यहीं से टकराव की शुरूआत होती है. अलगाव की स्थिति पैदा हो जाती है. ये भी देखा गया है कि आमतौर से अलग होने वाले माता-पिता और बच्चों के बीच अलग होने की वजह को लेकर कोई संवाद नहीं होता.
इसलिए पता ही नहीं चलता कि आख़िर वजह क्या है. इसके अलावा भाई-बहनों के अलग मिज़ाज और माता-पिता का किसी एक बच्चे के प्रति गहरा लगाव भी अलगाव की वजह बन जाते हैं.