भानुप्रतापपुर सीट उपचुनाव में रोमांचक संघर्ष देखने को मिल सकता है

भानुप्रतापपुर सीट पर पांच दिसंबर को उपचुनाव के लिए मतदान होगा। इसकी घोषणा होते ही कांग्रेस व भाजपा की सक्रियता बढ़ गई है। आम आदमी पार्टी भी इस बार इस सीट से जोर आजमाइश करती नजर आएगी। राज्य में सत्ताधारी दल कांग्रेस प्रचंड बहुमत में है इसलिए भानुप्रतापपुर उपचुनाव के परिणाम से सत्ता के समीकरण अप्रभावित रहेंगे।

इसके बाद भी यह उपचुनाव कई मायने में महत्वपूण रहा है। अगले वर्ष नवंबर-दिसंबर में राज्य विधानसभा के चुनाव होने हैं। भानुप्रतापपुर उपचुनाव को सत्ता का सेमीफाइनल तो नहीं कहा जा सकता है किंतु यह किसी प्रेक्टिस मैच से कम रोमांचक नहीं होगा। 2018 में कांग्रेस के सत्ता मंे काबिज होने के पश्चात चार वर्ष में यह तीसरा उपचुनाव होगा। इससे पहले दंतेवाड़ा व चित्रकोट विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने विजय हासिल की है। जनजाति बहुल बस्तर में विधानसभा की कुल 12 सीटें हैं और वर्तमान में भाजपा के पास एक भी सीट नहीं है।

इसके बाद दंतेवाड़ा उपचुनाव में भाजपा ने यह सीट भी गंवा दी। भानुप्रतापपुर सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है। भाजपा यहां इसलिए पूरी ताकत झोंक रही है कि आदिवासी क्षेत्रों में 2018 के पहले चली पार्टी विरोधी लहर की दिशा बदली जा सके। कांग्रेस सत्ता में है तो उसके लिए तो यह उपचुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न होगा ही। ऐसे में विधानसभा चुनाव 2023 के पूर्व यह चुनाव अत्यंत रोचक होने वाला है। भानुप्रतापपुर सीट यहां के विधायक मनोज मंडावी की मृत्यु के बाद रिक्त हुई है। कांग्रेस यहां से उनकी पत्नी को मैदान में उतार सकती है। मनोज मंडावी मध्यप्रदेश के जमाने से भानुप्रतापपुर के कद्दावर नेता रहे।छ 1998 में वह विधायक बने। 2000 में जब प्रदेश में अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तो मंडावी को गृह राज्य मंत्री बनाया गया।

2003 व 2008 में यहां से भाजपा के देवलाल दुग्गा चुनाव जीते। 2018 में मनोज मंडावी ने पुन: विजय दर्ज की। इस बार कांग्रेस की सरकार में उन्हें विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया गया। हालांकि विधि का विधान कुछ और ही था तथा वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। भानुप्रतापपुर कांकेर जिले में स्थित एक ब्लाक मुख्यालय है। 1969 में कांकेर राज्य के अंतिम राजा भानुप्रताप देव की स्मृति में भानुप्रतापपुर गांव बसाया गया था। अब यह क्षेत्र बस्तर संभाग के सर्वाधिक विकसित क्षेत्रों में सम्मिलित है।

यहां साक्षरता दर 90 प्रतिशत से अधिक है। सामाजिक, राजनीतिक रूप से भी यह क्षेत्र अत्यंत समृद्ध है। यहां होने वाला चुनाव अगले विधानसभा चुनाव में बस्तर की दिशा तय करेगा। राजनीतिक दल इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं हैं। ऐसे में उपचुनाव में यहां रोमांचक संघर्ष देखने को मिल सकता है।

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