रायपुर। छत्तीसगढ़ के उपचुनाव का जो नतीजा आना था, वह आ गया। इस नतीजे से न तो कांग्रेस को बल्लियों उछलने की जरूरत है और न ही भाजपा को निराश होने की। कांग्रेस भारी खुश है। मगर भाजपा निराश नहीं है। क्योंकि इस उपचुनाव के परिणाम से उसकी भविष्य की संभावनाएं तनिक भी प्रभावित नहीं हुई हैं बल्कि यह उम्मीद बंधी है कि वह आगे सफल हो सकती है। सबक मिला है कि सफल होने के लिए क्या करना होगा।
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कांग्रेस भानुप्रतापपुर उपचुनाव 21 हजार वोट के बड़े अंतर से जीती जरूर है मगर जीत का अंतर कम हुआ है। 2018 में जब मनोज मंडावी जीते थे, तब भाजपा की सरकार थी और अब उनकी पत्नी उपचुनाव जीती हैं तो कांग्रेस की सरकार है। इस सरकार को काम करने के लिए 4 साल का समय मिल चुका है। मनोज मंडावी के निधन के कारण उपचुनाव में उनकी पत्नी को सहानुभूति का सहारा मिला।
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उपचुनाव में सत्ता का जो प्रभाव पड़ता है, उसका असर भी दिखा। जनता जानती है कि उपचुनाव में विपक्ष को समर्थन देने से क्षेत्र का कुछ खास भला नहीं हो सकता। उपचुनाव जीतने के बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से जो कहा गया है, उस पर गौर करें तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बता रहे हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उन्हें क्या क्या कहा लेकिन भानुप्रतापपुर के मतदाताओं ने दिखा दिया कि असली बघवा जनता है।
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मुख्यमंत्री ने पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर भी निशाना साधा है कि भाजपा ने चुनाव के सबसे बड़े मैनेजर को उतार दिया था। 15 साल से हर चुनाव जिताते आ रहे थे। इस बार उनकी नहीं चली। मुख्यमंत्री का कथन विजेता की प्रतिक्रिया है तो पराजित पक्ष की दलील भी देख ली जाये।
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प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव का कहना है कि यह कांग्रेस की अनैतिक जीत है। नैतिक तौर पर कांग्रेस हार गई है। कांग्रेस ने चरित्र हत्या और सरकारी तंत्र का दुरुपयोग कर उपचुनाव तो जीत लिया। लेकिन स्पष्ट हो गया कि आदिवासी समाज अब कांग्रेस का साथ छोड़ता जा रहा है।
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आदिवासी समाज ने कांग्रेस का दावा खोखला साबित कर दिया है। चुनाव में भाजपा और निर्दलीय आदिवासी प्रत्याशी को जितने वोट मिले, उतने वोट कांग्रेस को नहीं मिल सके। साव कह रहे हैं कि कांग्रेस आदिवासी आरक्षण के नाम पर भ्रमित करने के बाद भी आदिवासी समाज का भरोसा नहीं जीत पाई।
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कांग्रेस की चारित्रिक हार तो प्रचार के दौरान ही हो गई थी। यह कांग्रेस की नहीं, बल्कि सहानुभूति और अलोकतांत्रिक हथकंडों की जीत है। कांग्रेस ने प्रशासनिक अनैतिकता से आदिवासियों का हक छीना है। कांग्रेस के दुष्प्रचार और सत्ता के दुरुपयोग के बावजूद भाजपा प्रत्याशी को जो जन आशीर्वाद प्राप्त हुआ, वह कांग्रेस की निम्न मानसिकता पर करारा प्रहार है। कांग्रेस ने षड्यंत्र करके जनादेश का हरण किया है। भाजपा इससे संतुष्ट है कि बेहद अनुकूल स्थिति में होकर भी कांग्रेस के वोट कम हुए और भाजपा ने अच्छा संघर्ष किया। वह कह रही है कि आदिवासी कांग्रेस का साथ छोड़ रहे हैं किंतु उसे इस पर चिंतन यह करना होगा कि आदिवासी समाज उसके पाले में कैसे आये।
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जब गुजरात में आदिवासी बहुल इलाकों में कांग्रेस का नुकसान हो सकता है तो छत्तीसगढ़ में भी असंभव नहीं है। वहां उन क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का नुकसान किया है। यहां भानुप्रतापपुर उपचुनाव में सर्व आदिवासी समाज कांग्रेस के लिए चुनौती बनकर उभरा है। भाजपा को यह कोशिश करनी होगी कि आदिवासी वोट बैंक में बिखराव का फायदा उसे कैसे मिले? रही बात अगले चुनाव में बाजी पलटने की तो भाजपा इस पर ध्यान दे कि गुजरात में मोदी को छेड़कर कांग्रेस ने जिस प्रकार अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है, वह चूक भाजपा छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल को छेड़कर न करे। क्योंकि भाजपा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर जितनी आक्रामक होगी, कांग्रेस उसे किसान और छत्तीसगढ़वाद से उतना ही जोड़ेगी।
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भाजपा ने मोदी को गुजरात की अस्मिता से जोड़कर कांग्रेस का सफाया कर दिया है तो भाजपा को समझना होगा कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल को कांग्रेस छत्तीसगढ़ की अस्मिता से न जोड़ पाये। भाजपा के लिए आवश्यक हो गया है कि वह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पीछे पड़ने की जगह कांग्रेस के पीछे पड़े और अगले चुनाव को कांग्रेस वर्सेज भाजपा बनाये।
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