कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब दो सप्ताह से भी कम समय रह गया है. इस चुनाव के दो प्रमुख दावेदारों- भाजपा और कांग्रेस के सामने जो चुनौतियाँ हैं, वो एकदम अलग हैं. दोनों पार्टियों में से किसी की भी कोई ग़लती उनके लिए सांप और सीढ़ी का खेल बन सकती है.
चुनाव के तीसरे दावेदार जनता दल (सेक्युलर) भाजपा और कांग्रेस में से किसी के लड़खड़ाने का इंतज़ार कर रही है ताकि वह ‘किंग न सही, किंगमेकर’ तो बन सके. जेडीएस की इच्छा पूर्ति इस बात पर निर्भर करती है कि राज्य की राजनीति के प्रमुख दावेदारों यानी कांग्रेस और बीजेपी अपनी चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं.
यदि भाजपा या उसके विधायक एंटी-इन्कंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) का सामना कर रहे हैं, तो कांग्रेस ऐसी ज़मीन पर चल रही है, जो पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है. कुछ हफ़्ते पहले राज्य के सामने जितने विवादित मामले थे, अब उतने मुद्दे नहीं बचे हैं.
उदाहरण के तौर पर, संशोधित आरक्षण नीति को अब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नाराज़गी जताई थी. हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई जगहों पर मुसलमानों के लिए आरक्षण हटाने को सही ठहराया और विवाद में फँसाने के लिए कांग्रेस के सामने चारा फेंके हैं.