बिलासपुर। सूबेदार के पद पर पदस्थ याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने आइजी के आदेश को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पदोन्नति का पात्र पाते हुए लाभ देने का निर्देश राज्य शासन को जारी किया है।
संजय कुमार सूर्यवंशी ने अधिवक्ता मतिन सिद्दीकी और नरेंद्र मेहेर के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कहा है कि सूबेदार के पद पर पुलिस अधीक्षक मुंगेली के कार्यालय में पदस्थापना थी। 25 दिसंबर 2013 को नया आरक्षक परमेश्वर श्रीवास के द्वारा रक्षित केंद्र परिसर में नशे की हालत में स्वयं के बाएं हाथ की कलाई को काट लिया था। घटना के संबंध में आरक्षक द्वारा हाथ काटने का कारण उनके द्वारा बार-बार मालिश के लिए बुलाना गाली-गलौज करना बताया गया। इसके फल स्वरूप पुलिस अधीक्षक मुंगेली द्वारा 25 अक्टूबर 2017 को एक वेतनवृद्धि एक वर्ष के लिए असंचायी प्रभाव से रोके जाने का दंड से दंडित करने का आदेश जारी किया था।
याचिका के अनुसार छत्तीसगढ़ पुलिस विनियम की धारा 221 के तहत पुलिस अधीक्षक को शक्ति नहीं है कि वह सूबेदार को दंडित कर सके और उनका एक वेतनवृद्धि असंचायी प्रभाव से रोक सके। याचिकाकर्ता ने पुलिस महानिदेशक कार्यालय के समक्ष अभ्यावेदन पेश किया था। सुनवाई के बाद डीजीपी ने इसे अमान्य कर दिया। इसी बीच पुलिस मुख्यालय छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सूबेदार से रक्षित निरीक्षक के पद पर पदोन्नति के लिए योग्यता सूची का प्रकाशन कर दिया। इसमें उसका नाम सरल क्रमांक एक पर था। पुलिस महानिदेशक रायपुर रक्षित निरीक्षक के पद पर दी गई पदोन्नति को निरस्त कर दिया।
पदोन्नति को निरस्त करने के पीछे पुलिस महानिरीक्षक बिलासपुर रेंज द्वारा जारी दंड को प्रभावशील होना बताया। मामले की सुनवाई जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता सिद्दीकी ने कहा कि पुलिस विभाग द्वारा याचिकाकर्ता के ऊपर दंडाधिरोपित करने की प्रक्रिया जो छत्तीसगढ़ सिविल सर्विसेज वर्गीकरण और अपील नियम 1966 की धारा 14 की उप धारा 3 से 23 तक का पालन नहीं किया गया है। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने आइजी के आदेश को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को रक्षित निरीक्षक पदोन्नति पद के लिए उपयुक्त पाया है।