माह-ए-रमजान में पहले रोजे के साथ ही मोमीनों ने बुराइयों से तौबा कर ली। मंगलवार की सुबह सहरी के बाद दिन का रोजा रखा गया।
वहीं मस्जिदों में तरावीह आरंभ हो गई। घरों में भी अकीदतमंदों ने कुरान का पाठ शुरू कर दिया है। दिनभर रोजा रखने और नमाज के बारे में उलेमाओं ने रमजान के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि रमजान के महीने में ही कुरान शरीफ नाजिल हुई थी।
यह इबादत और फजीलत का महीना है। इसमें किए गए सबाब का फल कई गुना अधिक मिलता है। उलेमाओं ने कहा कि रोजे का मतलब दिनभर सिर्फ भूखे प्यासे रहना नहीं है, बल्कि सभी तरह की बुराइयों से तौबा करना भी है। रमजान में हर अंग का रोजा होना चाहिए, यानी हाथों से न कोई गलत काम करना चाहिए और न ही जुबान से गलत बोलना चाहिए
इसके अलावा आंख, नाक, पैर सहित सभी अंगों पर नियंत्रण रखना चाहिए, ताकि इससे कोई गलत कार्य न हो सके। दिनभर रोजा रखने के बाद शाम को मस्जिदों और घरों में इफ्तारी की गई। इसके बाद मस्जिदों में रात साढ़े नौ बजे तरावीह की नमाज अदा की गई।
इससे पहले बीते रोज देर शाम रमजान का चांद नजर आते ही लोगों ने एक दूसरे को बधाई दी। मस्जिदों के साथ ही घरों में भी कुरानख्वानी शुरू हो गई। अब पूरे माह अकीदतमंद रोजा रखकर इबादत में मशगूल रहेंगे। नई बस्ती मस्जिद के इमाम मौलवी जाकिर, मौलाना पर्वत ने कहा कि रमजान में इबादत का 70 गुना अधिक सवाब मिलता है।
इस्लाम में माह-ए-रमजान को अल्लाह का महीना माना गया है। यही कारण है कि इसे इबादत और बरकतों का महीना भी कहते हैं।