झारखंड चुनाव: जेल से लेकर सत्ता में वापसी तक का सफर…

झारखंड चुनाव: जेल से लेकर सत्ता में वापसी तक का सफर…

झारखंड के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर दूसरी बार सत्ता में वापस आई है.

झारखंड में हुए विधानसभा चुनावों में हेमंत सोरेन की जेएमएम को 34 सीटें मिली हैं, जबकि उनके गठबंधन की प्रमुख पार्टी कांग्रेस को 16 और राष्ट्रीय जनता दल को 4 सीटें मिली हैं.

क्या ऐसा हेमंत सोरेन के कामकाज की वजह से हो पाया?

क्या हेमंत ने अपने पूर्व में किए सभी वादे निभा दिए, जिससे जनता ने उन्हें 56 सीटों के साथ दूसरी बार सरकार बनाने का मौका दिया.

इसी साल हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर राज्य की 14 में से 8 सीटें जीतने में सफल रही थी, जबकि जेएमएम को 3 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं.

तब से अब तक राज्य में राजनीतिक गलियारे में काफी कुछ बदल गया. उस दौरान हेमंत सोरेन जेल में थे.

हेमंत सोरेन से जब भी उनके कामकाज के बारे में पूछा गया, उन्होंने ये कहा कि दो साल कोरोना में निकल गए, बाकि के समय बीजेपी ने लगातार उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की.

इससे बचने और अपनी सरकार को बचाने में काफी समय निकल गया.

राज्य में पिछले कुछ अरसे से बीजेपी और जेएमएम के बीच खींचतान को जेएमएम और हेमंत सोरेन की राजनीति को करीब से देखने वाले पत्रकार राज सिंह सिलसिलेवार ढंग से समझाते हैं.

हेमंत सोरेन को सत्ता से बाहर करने की कोशिशों का ज़िक्र करते हुए वो कहते हैं, “इसकी शुरूआत पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास की तरफ से हुई थी.”

“साल 2022 में उन्होंने आरोप लगाया कि हेमंत सोरेन ने सीएम के पद पर रहते हुए पत्थर माइनिंग लीज अपने नाम करा ली.”

यह लीज हेमंत सोरेन के सीएम बनने से पहले लिया गया था. जिसे पद पर रहने के दौरान रिन्यू कराया गया था. लेकिन यहां किसी तरह की माइनिंग नहीं हुई थी. हालांकि, इसी दौरान लीज को निरस्त भी कर दिया गया.

मामला पद पर रहते हुए अनुचित लाभ लेने का था. रघुवर दास ने इससे संबंधित दस्तावेज तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस को सौंपे.

राज्यपाल ने केंद्रीय चुनाव आयोग से इसपर मंतव्य मांगा कि क्या इस आधार पर हेमंत सोरेन की सदस्यता जा सकती है. लंबे समय तक यह मामला राज्यपाल के पास पड़ा रहा. जवाब वाला लिफाफा आज तक नहीं खुला.

दूसरी केस में साल 2022 में ईडी ने साहेबगंज जिले में अवैध पत्थर माइनिंग से संबंधित केस दर्ज किया.

इसमें सीएम हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा को आरोपी बनाया. उन्हें जेल भी हुई. हालांकि इस वक्त वो जमानत पर बाहर हैं.

इसी मामले में हेमंत सोरेन से भी ईडी ने पूछताछ की.

तीसरी कोशिश के तौर पर देखें तो साल 2022 में ही बंगाल पुलिस ने झारखंड के तीन कांग्रेसी विधायकों को पैसों के साथ पकड़ा. चर्चा ये थी कि इन तीनों के अलावा सात और विधायक बीजेपी के संपर्क में थे.

इन विधायकों के पकड़े जाने के बाद सरकार गिराने की कोशिश विफल हो गई.

चौथी कोशिश हुई और वो आंशिक तौर पर कामयाब भी हुई.

रांची के बरियातू इलाके में सेना के जमीन को अवैध तरीके से बेचने के मामले की छानबीन ईडी कर रही थी. जांच के तार हेमंत सोरेन तक पहुंचे. इस बार ईडी हेमंत सोरेन से पूछताछ करने उनके आवास गई. पूछताछ के बाद 31 जनवरी को उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

हेमंत के जेल जाने के बाद चंपई सोरेन को राज्य का कमान सौंपा गया. आरोप ये है कि चंपई कोल्हान इलाके के विधायकों का एक अलग गुट तैयार कर रहे थे.

इस बीच ठीक छह महीने बाद 28 जून को हेमंत जेल से बाहर आ गए. ठीक पांच दिन बाद चंपाई सोरेन का इस्तीफ़ा ले लिया गया और एक बार फिर कमान हेमंत ने अपने हाथ में ले ली.

एक महीने बाद चंपई बीजेपी में शामिल हो गए.

आखिर इन सब चीजों से पार पाते हुए हेमंत सोरेन ने इतना प्रचंड बहुंत कैसे पा लिया?

वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र सोरेन कहते हैं, “जो आरोप बीजेपी लगाती रही, या फिर जिन मामलों की जांच केंद्रीय एजेंसी कर रही थी, वो साबित नहीं हो पाए. हेमंत के जेल जाने के बाद बैकअप के तौर पर कल्पना तैयार हो गई थीं.”

सोरेन कहते हैं, “वो हेमंत की बात लोगों तक लगातार पहुंचा रही थी. इसका असर ये हुआ कि जेएमएम के पारंपरिक मतदाताओं के अलावा पूरा आदिवासी समाज उनके साथ आकर खड़ा हो गया. इसका परिणाम ये हुआ कि खूंटी और तोरपा विधानसभा सीट, जहां से बीजेपी चुनाव जीतती आ रही थी, इस बार जेएमएम के खाते में चली गई.”

सुरेंद्र सोरेन ये भी कहते हैं, “आदिवासी सुरक्षित 28 सीट के अलावा भी कई ऐसी सीटे हैं जहां आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. इसी का परिणाम है कि हेमंत प्रचंड बहुमत लेकर आए और राजनैतिक सफलता के पैमाने पर अपने पिता शिबू सोरेन से बड़ी लकीर खींच गए.”

शिबू सोरेन के प्रेस सलाहकार रह चुके वरिष्ठ पत्रकार शफीक अंसारी सुरेंद्र सोरेन की बात से सहमत नहीं हैं.

वो कहते हैं, “मैं नहीं मानता हेमंत ने शिबू सोरेन से बड़ी लकीर खींच दी है. लेकिन उनकी राह पर जरूर चल पड़े हैं. वो जेल से बाहर निकलने के बाद अधिक सहनशील हो गए हैं. राजनीतिक आरोपों का जवाब वो काम से देने लगे हैं. चाहे वह मंईयां सम्मान योजना हो या फिर बिजली बिल माफी जैसी चीजें हों.”

शफीर अंसारी एक राजनीतिक चतुराई का जिक्र करते हैं, “हेमंत सोरेन ने जैसे ही मंईया सम्मान योजना के तहत प्रतिमाह 1000 रुपए देने की घोषणा करते हैं, बीजेपी गोगो दीदी योजना लाकर 2100 देने का वादा करती है.”

“चुनाव की घोषणा 15 अक्टूबर को होती है, हेमंत ने दो दिन पहले ही 2500 देने की योजना को कैबिनेट से पास करा लिया.”

वो इस पूरे प्रकरण में कल्पना की सक्रियता को याद दिलाना नहीं भूलते हैं. शफीक कहते हैं, “इस चुनाव में कल्पना सोरेन झारखंड की राजनीतिक कमाई हैं. परिवार और पार्टी पर जैसे ही आफ़त आई, कल्पना पूरे दमखम के साथ बाहर आई. फिलहाल उनके जैसा पॉपुलर जनप्रतिनिधि पूरे झारखंड में कोई नहीं है.”

शिबू सोरेन पर किताब लिखने वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा कहते हैं, “भ्रष्टाचार का आरोप जेएमएम के वोट बैंक के लिए कोई मायने नहीं रखता है. जेल से जैसे ही छूटकर आए, वैसे ही आदिवासी समाज में ये मैसेज गया कि शिबू सोरेन, जिसने अलग राज्य दिया, उसके बेटे को तंग किया जा रहा है.”

सिन्हा कहते हैं कि इससे शिबू का जो जनाधार था, वो हेमंत के पास ट्रांसफर हो गया.

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए अनुज सिन्हा कहते हैं, “हेमंत सोरेन अपने बदले लुक और निर्णयों की वजह से अपने मतदाताओं को ये मैसेज भी दे दिया कि आप शिबू सोरेन की कमी महसूस नहीं करेंगे. इस बार हेमंत के साथ सहयोगी पार्टी बारगेन नहीं कर पाएगी. यही नहीं, खुद हेमंत भी किसी तरह का लूज टॉक या केंद्र के साथ तनातनी की स्थिति पैदा नहीं होने देंगे.”

वहीं कल्पना सोरेन को लेकर वो कहते हैं, “उनकी सबसे बड़ी खूबी ये है कि वो विनम्र हैं. हिन्दी, अंग्रेजी, संथाली, ओडिया भाषा फर्राटे से बोलती हैं. भविष्य में हेमंत अगर किसी कानूनी पचड़े में पड़ते हैं, तो जेएमएम के पास कल्पना सोरेन एक निर्विवाद चेहरा मौजूद रहेगा.”

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