भारत का लोकतांत्रिक सूरत क्या बदसूरत हो जायेगा ? यह तो अकाट्य सच्चाई है, कि किसी भी सूरत का निर्माण सिरत से ही होता है।*
देश के सिरत के सूरत – ए – हाल पर क्या ही कहा जाएं, मणीपुर में हमारे मुल्क की ज़ीनते सरेराह नंगाकर घुमाई जा रही है। राजनीति उतारू है, साम्प्रदायिक सद्भावना का गला घोंटने पर आसमान छूती मंहगाई, अकल्पनीय बेरोजगारी, भरपेट पौष्टिक भोजन के अभाव में देश के अवाम का सूरत मुरझाया हुआ है, आंखें धंसी हुई है सूरत में, आंखों में संयोजे सारे सपने बिखर रहे हैं, देश में मचे भ्रष्टाचार के बोझ से कांधा झुक गया है, भोजन में पौष्टिकता के कमी के कारण छाती पेट से चिपक गया है, जिस अगले कदम से भविष्य के बुलंदी को छूना था वह कदम पहले ही लड़खड़ा कर ठहर सा गया है।
भाजपा के इस घेरेबंदी, कुटनीति और चुनावी प्रबंध में चुनाव आयोग भी बराबर की सहकार रही है !
सूरत गुजरात का एक संसदीय क्षेत्र जहां से जनता के मतदान करने के पहले छल – प्रपंच के योगदान से भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार मुकेश दलाल को कलेक्टर एवं सहायक निर्वाचन अधिकारी सौरभ पारधी ने निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया। सूरत जिला चुनाव कार्यालय के अनुसार भाजपा प्रत्याशी को छोड़कर सूरत का लोकसभा क्रमांक 26 के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने वाले सभी आठों अभ्यर्थी ने एक के बाद एक तास के पत्ते की तरह ढहते चले गये। उम्मीदवारों ने एकदम अनुशासित सिपाही की तरह अंतिम दिन अपना – अपना नाम चुनाव मैदान से वापस ले लिया। समर्पित भाव से जिन्होंने नाम वापस लिया उनमें चार निर्दलीय, तीन क्षेत्रीय दलों के क्षत्रप और एक राष्ट्रीय दल बहुजन समाज पार्टी के प्यारेलाल भारती थे।