बिलासपुर: प्रदेश की न्यायधानी के नाम से मशहूर, अरपा, शिवनाथ और खारुन नदी के तट पर बसे सुगंधित चावल की विविधता वाले बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र की प्रदेश की राजनीति में अपनी खास पहचान और नाम है। यहां वर्ष 1997 से लेकर आज तक यहां भाजपा के अलावा कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों की हांडी न तो चढ़ पाई और न ही इनकी दाल गल पाई। वर्ष 1977 से कांग्रेस ने हर बार प्रत्याशी बदले, जातिगत समीकरणों का ध्यान रखा, लेकिन उनके प्रत्याशी को जीत नहीं मिल पाई। इस संसदीय क्षेत्र ने भाजपा के आम प्रत्याशी को भी विजय दिलाकर खास बना दिया।
पिछड़ा वर्ग की बहुलता
इस सीट में अन्य पिछड़ा वर्ग की बहुलता है। भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दलों के रणनीतिकारों और चुनाव प्रबंधकों को यह बात अच्छी तरह पता है। तभी तो पहले दिन से ही इसी रणनीति पर काम करते नजर आ रहे हैं। तोखन साहू हो या फिर देवेंद्र यादव, जातिगत समीकरण में दोनों इस सीट के लिए फिट बैठते हैं। ओबीसी वर्ग को साधने के लिए भाजपा बीते 15 वर्ष से साहू समाज से प्रत्याशी उतारते रहे हैं तो कांग्रेस ने इस बार भाजपा को उसी अंदाज में चुनौती देने की ठानी है। भाजपा के अभेद गढ़ को भेदना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। यह कहें कि यह कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गई है।
दोनों दलों की नजरें टिकी
दोनों दलों की नजरें राजनीति पर टिकी हुई है। खासकर ओबीसी वर्ग के मतदाताओं को अपनी झोली में डालने की कोशिशें पहले दिन से चल रही है और अब चुनाव के नजदीक आते ही तेज हो गई है। तीन लाख 15 हजार साहू और दो लाख 95 हजार के करीब यादव मतदाताओं पर इनकी नजरें टिकी हुई है। दोनों ही दलों ने तीन महत्वपूर्ण स्तर पर काम करना प्रारंभ किया है। मैदानी क्षेत्र में सभा समारोह, रोड शो, नुक्कड़ सभाओं के लिए एक अलग प्रभावी टीम में केंद्र व राज्य शासन की योजनाओं की जानकारी रखने वाले वाकपटु वक्ताओं की टीम तैयार की गई। दूसरे स्तर पर गांव-गांव में मतदाताओं के बीच संपर्क का अभियान छेड़ा गया।
तीसरा और महत्वपूर्ण मसला ये कि जातिगत समीकरणों को साधने के लिए ओबीसी समाज से राजनीति के क्षेत्र से जुड़े नेताओं के अलावा समाज प्रमुखों की टीम बनाकर आठ से 10 गांव का क्लस्टर बनाकर बैठकों का दौर प्रारंभ किया गया है। दोनों ही दलों के रणनीतिकारों की कोशिश है कि सामाजिक वोटों को समाज प्रमुखों और समाज से जुड़े राजनीतिक दलों के नेताओं के प्रभाव का इस्तेमाल का हासिल किया जाए।
बसपा के वोटों के ध्रुवीकरण पर नजर
ओबीसी बहुलता वाले बिलासपुर लोकसभा सीट में ब्राह्मणों की भी अच्छी खासी संख्या है। 55 हजार के करीब ब्राह्मण हैं। 23 हजार मुस्लिम, 55 हजार के करीब ईसाई, मरार,सूर्यवंशी और सतनामी समाज के मतदाता हैं। ये ऐसे मतदाता हैं जो अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं। यही कारण है कि ओबीसी मतदाताओं के इतर चुनाव को प्रभावित करने वाले इन जातियों के प्रभावशाली लोगों के बीच संपर्क करने और साधने की कोशिश जारी है।
सामाजिक बैठकों के अलावा सम्मान समारोह का दौर भी बीते एक सप्ताह से अलग-अलग क्षेत्रों में चल रहा है। आमतौर पर यह देखने में आया है कि जब-जब बसपा की स्थिति राजनीतिक रूप से कमजोर होती है या फिर चुनाव में प्रभावी उम्मीदवार नजर नहीं आते, प्रतिबद्ध मतदाताओं के वोटों का तेजी के साथ ध्रुवीकरण होता है। इस बार भी कुछ इसी तरह की संभावना देखी जा रही है। कांग्रेस के रणनीतिकारों की नजरें इस ओर लगी हुई है। विधानसभा चुनाव की तर्ज पर वोटों के ध्रुवीकरण को लेकर जोर आजमाइश कर रहे हैं।
वैतरणी पार करने वालों पर विशेष नजर
भाजपा किसानों को अपनी ओर करने का लगातार प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के भाषण में 3,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की खरीदी, दो साल के बोनस की राशि के वितरण की बात कर किसानों को ध्यान भाजपा की ओर खींच रहे हैं।
आदिवासी के मुद्दे पर भाजपा की मुखरता ऐसी कि राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा प्रत्याशी द्रोपदी मुर्मु के कांग्रेस के विरोध की बात उठाकर आम जनता के बीच कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने के अलावा आदिवासी समाज से भाजपा द्वारा सीएम बनाने का मुद्दा भी लगातार उछाला जा रहा है। इन दो मुद्दों पर समाज को लामबंद करने की कोशिशें हो रही है।